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Sunday, July 19, 2015

यादें

कैसा था ज़ुनून
दूर होने का तुम्हारी यादों से,
दफ़ना दिए सब ख़्वाब
कुचल दिया वह दिल
जिसमें बसाया तुम्हें,
खरोंच दी परतें ज़िस्म से
पर फ़िर भी रही बाक़ी
चुभन तेरी छुवन की,
अहसास तेरे होने का
रोम रोम में ज़िस्म के।


शायद घुल गयी तेरी यादें
बूँद बूँद में लहू के
देतीं पल पल दर्द
तेरे न होने पर भी अहसास होने का,
ढोना ही होगा ताउम्र
यह बोझ तेरी यादों का।

...कैलाश शर्मा