Wednesday, June 05, 2019

जीवन ऐसे ही चलता है


कुछ घटता है, कुछ बढ़ता है,
जीवन ऐसे ही चलता है।

इक जैसा ज़ब रहता हर दिन,
नीरस कितना सब रहता है।

मन के अंदर है जब झांका,
तेरा ही चहरा दिखता है।

चलते चलते बहुत थका हूँ,
कांटों का ज़ंगल दिखता है।

आंसू से न प्यास बुझे है,
आगे भी मरुधर दिखता है।

...©कैलाश शर्मा

16 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (07-06-2019) को "हमारा परिवेश" (चर्चा अंक- 3359) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. काँटों के जंगल हों या सूखे मरुधर जीवन उनके पीछे भी मिलता है..सुंदर रचना !

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  3. जी नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ७ जून २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  4. अच्छी कविता .. जीवन वाकई काँटों का जंगल है ..

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  5. बहुत सरल, सत्य और सुन्दर दर्शन!!!

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  6. प्रभावशाली प्रस्तुति
    आपकी रचना बहुत कुछ सिखा जाती है

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  7. जीवन ऐसे ही चलता है ... कहीं दुःख तो कहीं ख़ुशी कहीं धूप तो कहीं छाँव ...
    भावपूर्ण रचना ...

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  8. बहुत सुंदर रचना।

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  9. बहुत सुन्दर रचना

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  10. कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
    शब्दों की मुस्कुराहट
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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