Saturday, July 06, 2019
मेरी जीवन अभिलाषा हो
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Kasish - My Poetry,
अभिलाषा,
कैलाश शर्मा,
जीवन,
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मंजूषा,
शब्द,
संबल
Wednesday, June 05, 2019
जीवन ऐसे ही चलता है
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प्यास,
मन,
मरुधर
Friday, May 03, 2019
क्षणिकाएं
गीला कर गया
आँगन फिर से,
सह न पाया
बोझ अश्क़ों का,
बरस गया।
आँगन फिर से,
सह न पाया
बोझ अश्क़ों का,
बरस गया।
****
बहुत भारी है
बोझ अनकहे शब्दों का,
ख्वाहिशों की लाश की तरह।
बोझ अनकहे शब्दों का,
ख्वाहिशों की लाश की तरह।
****
एक लफ्ज़
जो खो गया था,
मिला आज
तेरे जाने के बाद।
जो खो गया था,
मिला आज
तेरे जाने के बाद।
****
रोज जाता हूँ उस मोड़ पर
जहां हम बिछुड़े थे कभी
अपने अपने मौन के साथ,
लेकिन रोज टूट जाता स्वप्न
थामने से पहले तुम्हारा हाथ,
उफ़ ये स्वप्न भी नहीं होते पूरे
ख़्वाब की तरह.
...©कैलाश शर्मा
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मोड़,
स्वप्न
Wednesday, April 17, 2019
बेटियां
यादों में जब भी हैं आती बेटियां,
आँखों को नम हैं कर जाती बेटियां।
आती हैं स्वप्न में बन के ज़िंदगी,
दिन होते ही हैं गुम जाती बेटियां।
कहते हैं क्यूँ अमानत हैं और की,
दिल से सुदूर हैं कब जाती बेटियां।
सोचा न था कि होंगे इतने फासले,
हो जाएंगी कब अनजानी बेटियां।
होंगी कुछ तो मज़बूरियां भी उसकी,
माँ बाप से दूर कब जाती बेटियां।
माँ बाप से दूर हों चाहे बेटियां,
लेकिन जगह दुआ में पाती बेटियां।
...©कैलाश शर्मा
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Wednesday, March 27, 2019
शब्दों की चोट
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गहराई,
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Tuesday, March 12, 2019
मरुधर में बोने सपने हैं
कुछ दर्द अभी तो सहने हैं,
कुछ अश्क़ अभी तो बहने हैं।
कुछ अश्क़ अभी तो बहने हैं।
मत हार अभी मांगो खुद से,
मरुधर में बोने सपने हैं।
मरुधर में बोने सपने हैं।
बहने दो नयनों से यमुना,
यादों को ताज़ा रखने हैं।
यादों को ताज़ा रखने हैं।
नींद दूर है इन आंखों से,
कैसे सपने अब सजने हैं।
कैसे सपने अब सजने हैं।
बहुत बचा कहने को तुम से,
गर सुन पाओ, वह कहने हैं।
गर सुन पाओ, वह कहने हैं।
कुछ नहीं शिकायत तुमने की,
यह दर्द हमें भी सहने हैं।
यह दर्द हमें भी सहने हैं।
हमने मिलकर जो खाब बुने,
अब दफ़्न अकेले करने हैं।
अब दफ़्न अकेले करने हैं।
...©कैलाश शर्मा
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Thursday, February 14, 2019
क्षणिकाएं
जब
भी पीछे मुड़कर देखा
कम हो गयी गति कदमों की,
जितना गंवाया समय
बार बार पीछे देखने में
मंज़िल हो गयी उतनी ही दूर
व्यर्थ की आशा में।
कम हो गयी गति कदमों की,
जितना गंवाया समय
बार बार पीछे देखने में
मंज़िल हो गयी उतनी ही दूर
व्यर्थ की आशा में।
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बदल जाते हैं शब्दों के अर्थ
व्यक्ति, समय, परिस्थिति अनुसार,
लेकिन मौन का होता सिर्फ एक अर्थ
अगर समझ पाओ तो।
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व्यक्ति, समय, परिस्थिति अनुसार,
लेकिन मौन का होता सिर्फ एक अर्थ
अगर समझ पाओ तो।
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झुलसते अल्फाज़,
कसमसाते अहसास
होने को अभिव्यक्त,
पूछती हर साँस
सबब वापिस आने का,
केवल एक तुम्हारे न होने से।
कसमसाते अहसास
होने को अभिव्यक्त,
पूछती हर साँस
सबब वापिस आने का,
केवल एक तुम्हारे न होने से।
...©कैलाश शर्मा
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